बिहारी
महाकवि बिहारीलाल का जन्म 1595 के लगभग
ग्वालियर में हुआ। वे जाति के माथुर चौबे थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। उनका
बचपन बुंदेल खंड में कटा और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई, जैसे की निम्न
दोहे से प्रकट है -जनम ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल।तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल।।जयपुर-नरेश मिर्जा राजा जयसिंह अपनी नयी रानी के प्रेम में इतने डूबे
रहते थे कि वे महल से बाहर भी नहीं निकलते थे और राज-काज की ओर कोई ध्यान नहीं
देते थे। मंत्री आदि लोग इससे बड़े चिंतित थे, किंतु राजा से कुछ कहने को शक्ति किसी
में न थी। बिहारी ने यह कार्य अपने ऊपर लिया। उन्होंने निम्नलिखित दोहा किसी
प्रकार राजा के पास पहुंचाया -नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।अली कली ही सा बिंध्यों, आगे कौन हवाल।।इस दोहे ने राजा पर मंत्र जैसा कार्य किया। वे रानी के प्रेम-पाश से
मुक्त होकर पुनः अपना राज-काज संभालने लगे। वे बिहारी की काव्य कुशलता से इतने
प्रभावित हुए कि उन्होंने बिहारी से और भी दोहे रचने के लिए कहा और प्रति दोहे पर
एक अशर्फ़ी देने का वचन दिया। बिहारी जयपुर नरेश के दरबार में रहकर काव्य-रचना
करने लगे, वहां उन्हें पर्याप्त धन और यश मिला। 1664 में उनकी मृत्यु हो गई।